Friday, May 7, 2010

जाप्य मंत्र सूची (jain mantra)

35 अक्षरों का मंत्र :-
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं |
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ||

16 अक्षरों का मंत्र :-
अरहंत सिद्ध आइरिया उवज्झाया साहू

6 अक्षरों का मंत्र :-
(1) अरहन्त सिद्ध (2) अरहन्त सि सा
(3) ॐ नमः सिद्धेभ्य (4) नमोऽर्हत्सिद्धेभ्यः

5 अक्षरों का मंत्र :-
अ सि आ उ सा

4 अक्षरों का मंत्र :-
(1) अरहन्त (2) अ सि साहू

2 अक्षरों का मंत्र :-
(1) सिद्ध (2) ॐ ह्रीं

1 अक्षरों का मंत्र :-
ॐ (ओम्)
यह ध्वनि पांचो परमेष्ठी नामों के पहले अक्षर मिलाने पर बनती है | यथा अरहन्त का पहिला अक्षर 'अ', अशरीरी (सिद्ध) का 'अ', आचार्य का 'आ', उपाध्याय का 'उ', तथा मुनि (साधु) का 'म्', इस प्रकार
अ+अ+आ+उ+म् = ॐ |
(यह 'ओ3म्' इस प्रकार भी लिखा पाया जाता है जो कि अशुद्ध है | )

रत्नत्रय जाप्य मंत्र :-
ॐ ह्रीं श्रीसम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रेभ्योनमः |

दशलक्षण जाप्य मंत्र :-
ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल-समुद्गताय उत्तम क्षमा धर्मांगाय नमः |
(अथवा)
ॐ ह्रीं उत्तम क्षमा-धर्मांगाय नमः |
इसी प्रकार 'उत्तम मार्दव' आदि धर्मों के मन्त्र जानना चाहिए |

षोडशकारण जाप्य मंत्र :-
ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धि आदि षोडशकारणेभ्योनमः |

नन्दीश्वर व्रत (आष्टाह्विक व्रत) जाप्य मंत्र :-
(1) ॐ ह्रीं नन्दीश्वरसंज्ञाय नमः |
(2) ॐ ह्रीं अष्टमहाविभूतिसंज्ञायनमः |
(3) ॐ ह्रीं त्रिलोकसारसंज्ञायनमः |
(4) ॐ ह्रीं चतुर्मुखसंज्ञायनमः |
(5) ॐ ह्रीं पंच-महालक्षण-संज्ञाय नमः |
(6) ॐ ह्रीं स्वर्गसोपान-संज्ञाय नमः |
(7) ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राय नमः |
(8) ॐ ह्रीं इन्द्रध्वज-संज्ञाय नमः |

पुष्पांजलि व्रत जाप्य मंत्र :-
ॐ ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धि अशीति-जिनालयेभ्योनमः |

रोहिणी व्रत जाप्य मंत्र :-
ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य-जिनेन्द्राय नमः |

ऋषि-मण्डल जाप्य मंत्र :-
ॐ ह्रां ह्रिं ह्रुं ह्रुं ह्रें ह्रैं ह्रौं ह्रः अ सि आ उ सा सम्यग्दर्शन-
ज्ञान-चारित्रेभ्यो ह्रीं नमः |

सिद्धचक्र-विधान का जाप्य मंत्र :-
ॐ ह्रीं अर्हं अ सि-आ-उ सा नमः स्वाहा |

त्रैलोक्य मंडल विधान का जाप्य मंत्र :-
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अनाहत-विद्याधिपाय त्रैलोक्यनाथाय नमः-
सर्व शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा

लघु शान्ति मंत्र :-
ॐ ह्रीं अर्हं असिआउसा सर्वशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा |

वेदी प्रतिष्ठा, कलशारोहण, बिम्ब स्थापन जैसे अवसरों का मंत्र :-
ॐ ह्रीं श्री क्लीं अर्हं असिआउसा अनाहत विद्यायै-
अरिहन्ताणं ह्रीं सर्वशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा |

रविव्रत जाप्य मंत्र :-
ॐ ह्रीं नमो भगवते चिन्तामणि-पार्श्वनाथ
सप्तफण-मंडिताय श्री धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय
मम ऋद्धिं सिद्धिं वृद्धिं सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा |

रविव्रत लघु जाप्य मंत्र :-
ॐ ह्रीं अर्हं श्री चिन्तामणि-पार्श्वनाथाय नमः

मनोरथ सिद्धिदायक मंत्र :-

ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमः |

रोगनाशक मंत्र :-
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कलिकुण्डदण्डस्वामिने नमः
आरोग्य-परमेश्वर्यं कुरु कुरु स्वाहा |
(यह मन्त्र श्री पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा के सामने शुद्ध भाव और क्रियापूर्वक 108 बार जपना चाहिये | )

मंगलदायक मंत्र :-
ॐ ह्रीं वरे सुवरे असिआउसा नमः स्वाहा |
(एकान्त में प्रतिदिन 108 बार धूप के साथ, शुद्ध भावपूर्वक जपें | )

ऐश्वर्यदायक मंत्र :-
ॐ ह्रीं असिआउसा नमः स्वाहा |
(सूर्योदय के समय पूर्व दिशा में मुख करके प्रतिदिन 108 बार शुद्ध भाव से जपे | )

सर्वसिद्धिदायक मंत्र :-
ॐ ह्रीं क्लीं श्री अर्हं श्री वृषभनाथ तीर्थंकराय नमः |
(समस्त कार्यों की सिद्धि हेतु प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक 108 बार जपना चाहिये | )

सर्वग्रह शान्ति मंत्र :-
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः असिआउसा सर्व-शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा |
(प्रातः काल जप करें
)

रोग निवारक मंत्र :-
ॐ ह्रीं सकल-रोगहराय श्री सन्मति देवाय नमः |

शान्तिकारक मंत्र :-
ॐ ह्रीं परमशान्ति विधायक श्री शान्तिनाथाय नमः |
अथवा
ॐ ह्रीं श्री अनंतानंत परमसिद्धेभ्यो नमः |

घंटाकर्ण मंत्र :-
ॐ ह्रीं घंटाकर्णो महावीर, सर्वव्याधि-विनाशकः |
विस्फोटकभयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबलः |1|
यत्र त्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽक्षर-पंक्तिभिः |
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वात-पित्त-कफोद्भवाः |2|
तत्र राजभयं नास्ति, यन्ति कर्णे जपात्क्षयम् |
शाकिनी भूत वेताला, राक्षसाः प्रभवन्ति न |3|
नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दंश्यते |
अग्निचौरभयं नास्ति, ॐ श्रीं घंटाकर्ण !
नमोस्तु ते ! ॐ नर वीर ! ठः ठः ठः स्वाहा ||
(इस मंत्र का 21 बार जप करने से राज-भय, चोर-भय, अग्नि और सर्प - भय, सब प्रकार की भूत - प्रेत - बाधा दूर होतें हैं | सर्व विपत्ति-हर्ता मंत्र है | )

लक्ष्मी प्राप्ति एवं मनोकामनापूर्ण करने का मंत्र :-
(प्रातःकाल 1 माला)
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री अ सि आ उ सा नमः |

नवग्रह शान्ति के लिए जाप्य मंत्र :-
सूर्य के लिए : ॐ णमो सिद्धाणं | (10 हजार)
चन्द्र के लिए : ॐ णमो अरिहंताण | (10 हजार)
मंगल के लिए : ॐ णमो सिद्धाणं | (10 हजार)
बुध के लिए : ॐ णमो उवज्झायाण | (10 हजार)
(गुरु) वृहस्पति : ॐ णमो आइरियाणं | (10 हजार)
शुक्र के लिए : ॐ णमो अरिहंताणं | (10 हजार)
शनि के लिए : ॐ णमो लोए सव्व साहूणं | (10 हजार)
केतु के लिए : ॐ णमो सिद्धाणं | (10 हजार)
राहू के लिए : ॐ णमो अरिहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं,
ॐ णमो आइरियाणं, ॐ णमो उवज्झायाण
ॐ णमो लोए सव्व साहूणं, (10 हजार)

पापभक्षिणी विद्यारुप मंत्र :-
ॐ अर्हन्मुख-कमलवासिनीपापात्म-क्षयंकरि, श्रुतज्ञान-
ज्वाला-सहस्र प्रज्ज्वलिते-सरस्वति मम पापं हन हन,
दह दह, क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः क्षीरवर-धवले अमृत-संभवे
वं वं हूं हूं स्वाहा |
(इस मंत्र के जप के प्रभाव से साधक का चित्त प्रसन्नता धारण करता पाप नष्ट हो जाते हैं, और आत्मा में पवित्र भावनाओं का संचार होता हैं | )

महामृत्युंजय मन्त्र :-
ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं | ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ ह्रूं णमो आइरियाणं,
ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रः णमो लोए सव्वसाहूणं, मम सर्व -
ग्रहारिष्टान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय सर्वशान्तिं
कुरु कुरु स्वाहा |
(विधि दीप जलाकर धूप देते हुए नैष्ठिक रहकर इस मंत्र का स्वयं जाप करें या अन्य द्वारा करावें | यदि अन्य व्यक्ति जाप करे तो 'मम' के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम जोड़ लें जिसके लिए जाप करना है | ) इस मंत्र का सवा लाख जाप करने से ग्रह-बाधा दूर हो जाती है | कम से कम इस मंत्र का 31 हजार जाप करना चाहिये | जाप के अनन्तर दशांश आहुति देकर हवन भी करें |

शान्ति मंत्र जाप्य विधि
जहाँ 1 है वहां णमो अरिहन्ताणं, जहाँ 2 है वहां णमो सिद्धाणं, जहां 3 है वहां णमो आइरियाणं, जहाँ 4 है वहां णमो उवज्झायाणं, जहां 5 है वहां णमो लोए सव्व साहूणं पढ़ना चाहिए |


प्रतिदिन कम से कम 21 बार जाप्य अवश्य कर लेना चाहिए | यह जाप्य परम मांगलिक और शान्ति का देने वाला है |

( मंत्रों का जाप को करते समय स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिये | )

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